हमारे टूटे सपनो ने,
हमें जीना सिखा दिया;
लोग तो बहुत देखे हमने,
पर आज इन बिखरे अरमानो ने,
लोगों की कड़वाहट को पीना सिखा दिया।
यूँ तो हम हमेशा मुस्कुराते हैं,
पर हज़ारों दर्द छिपे हैं इस मुस्कान में,
अब आलम ये है,
कि ज़ख्म तो काफ़ी हैं,
पर उन्हें बखूबी छिपाता हूँ,
यही तो खूबी है,
बिखरे हुए इंसान में।
पर उम्मीद अभी बाकी है,
गिर कर फिर उठूंगा भले ही,
उठ कर फिर गिर जाऊ;
क्योकि गिरने पर तकलीफ ज़रूर होती है;
पर ठोकर ही इंसान को चलना सिखाती है;
आखिर में वह शाम ही है,
जो सूरज को ढलना सिखाती है।
नादाँ है वो लोग,
जो लहरों की ख़ामोशी को समुन्दर की बेबसी समझते हैं,
जितना गहरा समुन्दर,
उतना ही तूफ़ान अभी बाकी है;
खोल दे मेरे पंख ए ग़ालिब,
मेरी उड़ान अभी बाकी है,
ये मंज़िल नहीं है मेरी,
पूरा का पूरा आसमान अभी बाकी है।
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